۴ آذر ۱۴۰۳ |۲۲ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 24, 2024
आयतुल्लाह बाक़ेरूल उलूम

हौज़ा / पेशकश: दनिश नामा ए इस्लाम, इन्टरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर दिल्ली और काविश: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, बाक़ेरुल उलूम आयतुल्लाह सय्यद मोहम्मद बाक़िर रिजवी शबे जुमा ७ सफ़र १२८६ हिजरी शहरे लखनऊ में पैदा हुए, आपके वालिदे माजिद आयतुल्लाह सय्यद मोहम्मद अबुल हसन ओर जद्दे पिदरी आयतुल्लाह सय्यद अली शाह कश्मीरी लखनवी |

बाकेरुल उलूम के जद्दे मादरी मुमताजुल ओलमा सय्यद मोहम्मद तक़ी थे, इसलिए आपकी विलादत बर्रे सगीर के दो बड़े खानदानों की ख़ुशी का सबब बनी|

वीडियो के लिए क्लिक करेः भारतीय धार्मिक विद्वानो का परिचय । आयतुल्लाह सय्यद मोहम्मद बाक़िर लखनवी

बाक़ेरूल उलूम ने इब्तेदाई ज़िंदगी अपने वालिद के ज़ेरे साया गुज़ारी, उसके बाद अदब,रियाज़यात, हैअत, मंतिक़ वा फ़लसफ़ा ,कलाम, इब्तेदाई फ़िक़ वा उसूल ,दिरायत, वा हदीस व तफ़सीर की तालीम उस्तादे रियाज़यात व माक़ूलात, “मोलाना शेख़ तफ़ज़्जुल हुसैन फतेहपुरी” ओर मंकूलात “मोलाना सय्यद हैदर अली लखनवी” से हासिल की कुछ ही अर्से में तमाम मुक़द्देमात मे कमाल हो गया , उसके बाद तकमीले फ़िक़ व उसूल के लिए अपने वालिदे अल्लाम के सामने ज़ानुए अदब तै किया ओर १५ साल की उम्र में दर्जए इजतेहाद पर फ़ाइज़ हुए, इजतेहाद की ताईद आपके वलिदे मजिद ने बाज़ अकाबिर ओलमा से इस अंदाज़ मे की के अल्हम्दो लिल्लाह सय्यद मोहम्मद बाक़िर दर्जए इजतेहाद पर फाइज़ हैं

१३०१ हिजरी आयतुल्लाह सय्यद मोहम्मद इब्राहीम की दुखतरे नेक अख्तर से अक़्दे मसनून हुआ|

बाक़ेरूल उलूम सन: १३०२ हिजरी में अपने वालिदे माजिद के हमराह नजफ़े अशरफ़ तशरीफ  ले गए ,आम तोर से जो तुल्लाब इराक़ जाते थे वो पहले सतही दुरूस में शरीक होते थे फिर उनको दरसे ख़ारिज की इजाज़त मिलती थी मगर बाकक़ेरूल उलूम की खुसुसियत ये थी के आप को जाते ही दर्से ख़ारिज की इजाज़त मिल गई,क्योंकि आप नजफ़ जाने से पहले ही अरबी अदब,फ़िक़, उसूल,फलसफ़ा, मंतिक़, हदीस,तफ़सीर, ओर दिरायत, पर कामिल महारत रखते थे ओर दर्जए इजतेहाद पर फ़ाइज़ थे|

आपने अपने वालिदे अल्लाम आयतुल्लाह सय्यद अबुल हसन रिज़वी, आयतुल्लाह शेख़ मिर्ज़ा हबीबुल्ला रशती, आयतुल्लाह शेख़ मोहम्मद काज़िम खुरासानी, आयतुल्लाह मिर्ज़ा हुसैन खलीली तेहरानी, आयतुल्लाह सय्यद मोहम्मद काज़िम यज़दी, आयतुल्लाह फ़तहुल्ला इसफ़हानी, आयतुल्लाह शेख़ मिर्ज़ा हुसैन, ओर आयतुल्लाह मोहम्मद हुसैन शहरिस्तानी से कस्बे फ़ैज़ किया|

उनके अलावा बाकक़ेरूल उलूम के असातेज़ा में आयतुल्लाह मिर्ज़ाए शीराज़ी ओर आयतुल्लाह शेख़ मोहम्मद हसन मामक़ानी के नाम भी सरे फेहरिस्त हैं, आपने होज़ए इलमिया नजफ़े अशराफ़ में तक़रीबन ११ साल फ़ोक़हा व मुजतहेदीन के दर्से ख़ारिज मे शिरकत की ओर उनसे सनदे इजतेहाद व रिवायत हासिल करके १३१६ हिजरी में लखनऊ में वापस आये|

आयतुल्लाह बाक़ेरूल जब लखनऊ आए तो आपके वालिद के मुक़ल्लेदीन ने आपकी जानिब रुजू किया,बर्रे सगीर के अलावा अफ्रीक़ा योरोप तक आपके वालेदैन के मुक़ल्लेदीन फैले हुए थे, १३१३ हिजरी: में आपके वालिदे अल्लाम “आयतुल्लाह अबुल हसन अबू साहब” ने रहलत फरमाई उनके इंतेक़ाल के बाद आप उनके वसी ओर जानशीन मुक़र्रर हुए आप हिंदुस्तान की मशहूर वा मारूफ़ दर्सगाह मदर्सए “सुल्तानुल मदारिस” में मुदर्रिसे आला मुक़र्रर हुए,आपके इल्म ओर ज़ोहदो तक़वा की शोहरत हुई तो पूरे बर्रे सगीर से उलूमे आले मोहम्मद अ: के मुश्ताक़ अफ़राद का लखनऊ आने का सिलसिला जारी हो गया|

बर्रे सगीर में दर्से ख़ारिज का रिवाज नहीं था ; सतही तालीम के बाद अगर किसी को दर्से ख़ारिज में शिरकत का इरादा होता तो इराक़ का रुख़ करता था आपकी एक खुसुसियत ये भी है आपने मदर्सए सुल्तानुल मदारिस मे दर्स देना शुरू किया, जिसमें हादियुल मिल्लत सय्यद मोहम्मद हादी मरहूम के छोटे भाई “शमसुल ओलमा सय्यद सिब्ते हसन” ओर  “उम्दतुल मोहक़्क़ीन सय्यद आलिम हुसैन” शिरकत करते थे|

मोसूफ़ ने बहुत ज़्यादा तुल्लाब को ज़ेवरे इलमो अदब से अरासता किया जिनमे से: मोलाना सय्यद शब्बीर हसन “साबिक़ उस्ताद वसीक़ा अरबी कालिज फ़ैज़ाबाद” मुफ़्ती ए आज़म आयतुल्लाह सय्यद अहमद अली मूसवी, ज़फरुल मिल्लत आयतुल्लाह सय्यद ज़फरुल हसन ,आयतुल्लाह सय्यद राहत हुसैन गोपालपुरी , आयतुल्लाह सय्यद सिब्ते हसन नक़वी वगैरा के नाम क़ाबिले ज़िक्र हैं|

मोसूफ़ ने तुल्लाब को दुरुस देने के लिए करबलाए मोअल्ला में “मदर्सए ईमानया” की बुनयाद रखी जिसमें आयतुल्लाहुल उज़मा सय्यद शहाबुद्दीन मरअशी नजफ़ी ने भी आपसे कस्बे फ़ैज़ किया ,मोसूफ़ इलमो अमल ज़ोहदो तक़वा के मुरक़्क़ा थे जिसके सबब अपने तो अपने हिन्दू  भी मुतास्सिर होते थे|

आप इंतेहाई दर्जा मुतवाज़े ओर मुंकसेरुल मिज़ाज थे, एक मर्तबा वाज़ फ़रमा रहे थे के किसी ने आपकी वाज़ से मुतास्सिर होकर कहा “क्या आलेमाना बयान है” ये सुनते ही आपके चेहरे का रंग तब्दील हो गया ओर फ़रमाया: आलिम सिर्फ अहलेबैत अ: हैं|

दर्सो तदरीस,वाज़ो ताबलीग ओर मदर्सए सुल्तानुल मदारिस के इंतेज़ामी उमूर की मसरूफ़ियात के बावजूद आपने तसनीफ़ो तालीफ़ में भी नुमाया कारनामे अंजाम दिये,आपकी हर तालीफ़ अपनी मिसाल आप है जिनमें से: मजालिसे बाक़िरया,मंहजुल यक़ीन वा सहीफ़तुल मुत्तक़ीन ,मवाइज़े बाक़िरया, सोबुद्दीमुन नवाफ़िस, वगैरा के नाम क़ाबिले ज़िक्र हैं, उसके अलावा आपकी कुछ ओर भी किताबें थीं जो मफ़कूद हो गईं|

मोसूफ़ अरबी ,फारसी ओर उर्दू के अज़ीम शायर थे, मोलाना आलिम हुसैन ने आपके अशआर की तादाद पाँच हज़ार से ज़्यादा बताई है ,एक मर्तबा मदरसे के उस्ताद अल्लामा सिब्ते हसन ने तबीयत नासाज़ होने के सबब छुट्टी की दरखास्त मंज़ूम अरबी ज़ुबान में भेजी तो आप ने मंज़ूम अरबी में ही दरखास्त की मंजूरी तहरीर फ़रमाई |

आप एक अदीब, शायर, मुताकल्लिम, फ़क़ीह ओर उसूली के साथ साथ ज़बरदस्त आबिदो ज़ाहिद थे, “मोलाना सय्यद मुर्तज़ा हुसैन” मतलए अनवार में लिखते हैं आपको इमाम हुसैन ओर कर्बला से खास इश्क़ था, कई मर्तबा ज़ियारात से मुशर्रफ़ हुए ओर १३६४ हिजरी में आखिरी सफ़र तो यूँ किया जैसे खास तोर से तलब का हुक्म आया हो मुझे उनके रफ़ीक़े सफ़र ने बताया के जनाब की करामात जज़्बा वा खुलूस के हालात जो मैंने सफ़र में देखे उनसे मालूम हुआ के लखनऊ में उनके बारे में जो वाक़ेआत मशहूर हैं वो यके अज़ हज़ार हैं|

आपकी मशहूर करामात में से अहले सुन्नत आलिम के सामने अरीज़े का ग्लास से ग़ायब होना, नमाज़ की अदाएगी ओर ट्रेन का ना चलना, “जिस पर अंग्रेज़ गार्ड ने कहा काश ये हमारी क़ौम मे होते” इंतेक़ाल का वक़्त का इल्म होना, ओर एक साहब को अंगूठी देना जो १६ शाबान को चटख गयी,सामर्रा में ज़रीहे अक़दस से बरामद होना वग़ैरा हैं|

अल्लाह ने आपको तीन बेटे अता किए जिनके असमाए गिरामी कुछ इस तरह हैं: आयतुल्लाह सय्यद मोहम्मद रिज़वी, आयतुल्लाह सय्यद अली रिज़वी, मोलाना सय्यद रज़ी रिज़वी इस वक़्त आपकी नस्ल फ़क़त आपके फ़र्ज़न्द मोलाना सय्यद अली रिजवी से बाक़ी है|

आखिरकार ये इल्मो अमल का आफताब १६ शाबानुल मोअज़्ज़म १३४६ हिजरी बरोज़ जुमेरात सुबह दस बजे दिन करबलाए मोअल्ला में गुरूब हो गया, हरम के मीनारों से इंतेक़ाल की ख़बर सुनाई गई,आपके हमदर्स मर्जए अली क़द्र आयतुल्लाह सय्यद अबुल हसन इसफेहानी ने नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई जिसमें तक़रीबन पाँच हज़ार लोगों ने शिरकत की ओर करबलाए मोअल्ला इमाम हुसैन अ: के रोज़ए मुबारक में क़त्लगाह के क़रीब बाबे जैनबया बाई तरफ से तीसरा हुजरा अपने वालिदे अल्लाम के पास सुपुर्दे ख़ाक कर दिया गया ओर तीन दिन तक फातेहा खानी का सिलसिला जारी रहा|

माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़ : मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-२ पेज-१५९दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, २०१९ ईस्वी।

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